भारत के अनोखे गांव! विधायक छोड़िए, यहां मुख्यमंत्री का भी नाम नहीं जानते लोग

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के दो सुदूर गांवों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. ग्रामीण पेयजल, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सड़क जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. उनकी आवाज प्रशासन तक नहीं पहुंच पा रही है, जिससे जीवन स्तर बेहद निचला है.
छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में दो ऐसे गांव जो आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. जिले के दक्षिण दिशा और अंतिम छोर में बसे इन दो गांवों के लोगों की आवाज और मांग दब के रह गई है. इन लोगों को अपने क्षेत्रीय विधायक को आज तक देखा नहीं. ग्रामीणों ने अपनी समस्या को कई बार जिम्मेदार अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सके. गर्मी, बरसात या फिर सर्दी हर मौसम में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
बालोद जिले के अंतिम छोर व वनांचल क्षेत्र में बसे दो ऐसे गांव हैं, जहां के ग्रामीण न केवल मूलभूत सुविधाओं से वंचित है, बल्कि उनकी जीवन शैली भी अलग है. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क भी सही नहीं है. ये दोनों ही गांव नलकसा ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम है. ग्रामीणों की माने तो कई बार गांव में सुविधाओं के लिए इनके द्वारा आवाज उठाई गई. लेकिन इनकी आवाज सघन जंगलों में ही दब कर रह गई. यही नहीं गांव तक अधिकारी व जनप्रतिनिधि भी नहीं पहुंचते.
जंगलों के बीच स्थित नारंगसुर गांव, जो कि ग्राम पंचायत नलकसा का आश्रित ग्राम है. यहां के ग्रामीणों की जीवन शैली भी कुछ अलग है. बोईरडीह डेम के डुबाने क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद भी इन्हें पेयजल के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि बच्चों को पढ़ाई करने के लिए दीगर गांव जाना पड़ता है. यहां जंगलों से मिलने वाले हर्रा बेहरा, इमली, लाख, महुआ ही ग्रामीणों के लिए आय का साधन हैं. ग्रामीण इन्हें अपने स्तर पर एकत्र करते हैं और फिर उसे दूसरे जगह जाकर बेचते हैं. इससे उन्हें कोई खास आमदानी नहीं होती. लेकिन फिर भी जीवन यापन के लिए यही सहारा है.
पीने का पानी तक नहीं मिलता
ग्रामीणों की माने तो गांव तक पहुंच मार्ग कच्चा है. मार्ग में पुल निर्माण भी नहीं हुआ है. बरसात के दिनों में ग्रामीण अपने गांव तक सिमट कर रह जाते हैं. बच्चे दूसरे गांव में पढ़ने नहीं जा पाते. यही नहीं गांव भी कीचड़ से सराबोर रहता है. गांव में सौर ऊर्जा से संचालित नलजल है लेकिन गर्मी के दिनों में उसमें सही से पानी नहीं आ पाता. ऐसे में ग्रामीण डेम के पानी का सहारा लेते हैं. गांव के गलियों में कुछ साल पहले खंभे लगाकर लाइट की व्यवस्था की गई, लेकिन कुछ ही दिनों में यह खराब हो गया. उसके बाद उसे सुधारा नहीं गया.
पलायन कर रहे हैं लोग
रात के अंधेरे में जंगली जानवर भी इस गांव में आ जाते है और इनके पालतू जानवरों को नुकसान पहुंचाते हैं. जंगली जानवर आने पर ये अपने घरों में ही दुबक कर रह जाते हैं. गांव में साल 2013 में आंगनबाड़ी भवन बन कर तैयार हुआ. लेकिन वह भवन बिना उपयोग किए ही अब जर्जर होने की कगार पर है. वहां कोई पढ़ाने ही नहीं आता. अब धीरे-धीरे इस गांव की आबादी कम होती जा रही है.
सिर्फ 50 लोगों की है आबादी
सुविधाओं का अभाव होने की वजह से ग्रामीण अब इस गांव को छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं. गांव में महज 10 घर हैं और आबादी करीबन 50 है. बरसात के दिनों में तबियत खराब होने पर उन्हें उपचार के लिए दीगर गांव भी नहीं ले जाया जा सकता. पुल-पुलिया में पानी भरा रहता है. बरसात के दिनों में ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती.