अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर सहकार भारती पदाधिकारियों ने किया मल्हार पुरातत्व संग्रहालय का निरीक्षण
मूर्तियों की बदहाल स्थिति पर जताई चिंता

मल्हार (बिलासपुर) |अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस 2025 के अवसर पर सहकार भारती छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए मल्हार स्थित पुरातत्व संग्रहालय का निरीक्षण किया। सहकार भारती के प्रदेश संयोजक (पैक्स प्रकोष्ठ) श्री घनश्याम तिवारी एवं प्रदेश कोषाध्यक्ष श्री रामप्रकाश केशरवानी ने इस अवसर पर मल्हार नगर का दौरा किया और वहाँ पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित प्राचीन मूर्तियों एवं धरोहरों की वर्तमान स्थिति का जायजा लिया।
निरीक्षण के दौरान यह पाया गया कि संग्रहालय परिसर में सैकड़ों ऐतिहासिक मूर्तियाँ एवं प्रतिमाएँ खंडित अवस्था में बिना किसी संरक्षण के खुले आसमान के नीचे पड़ी हुई हैं। इनमें से कई मूर्तियाँ शैव, वैष्णव और जैन परंपरा से संबंधित हैं, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण हैं। अधिकांश मूर्तियाँ समय की मार झेलते हुए तेज धूप, वर्षा और अन्य प्राकृतिक कारणों से क्षतिग्रस्त हो रही हैं। इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए श्री रामप्रकाश केशरवानी ने कहा कि “इतनी कीमती और दुर्लभ धरोहरें यदि खुले में यूँ ही उपेक्षित पड़ी रहीं, तो आने वाले वर्षों में हमारा इतिहास ही मिट सकता है।”
उन्होंने यह भी बताया कि सहकार भारती द्वारा मल्हार में एक नवीन और सुव्यवस्थित संग्रहालय की स्थापना हेतु पुरातत्व विभाग एवं राज्य शासन से संपर्क कर आवश्यक प्रस्ताव रखा जाएगा। उन्होंने यह आश्वासन दिया कि प्रयास किये जाएंगे कि इन मूर्तियों एवं अन्य पुरातत्विक धरोहरों को यथासंभव संरक्षित, व्यवस्थित और प्रदर्शित किया जाए ताकि ये धरोहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें।
इस दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ के पहले पुरातत्ववेत्ता स्वर्गीय श्री कृष्णकुमार तिवारी एवं उनके पिता स्वर्गीय खुलूराम तिवारी को सादर स्मरण किया। श्री कृष्णकुमार तिवारी ही वह व्यक्तित्व थे जिनके अथक प्रयासों से मल्हार नगर में पुरातत्व की विधिवत खुदाई का शुभारंभ हुआ। वे स्वयं एक प्रख्यात पुरातत्व संग्रहकर्ता थे जिन्होंने वर्षों तक दुर्लभ वस्तुओं को एकत्र कर सहेज कर रखा। उनके संग्रह में ताम्रपत्र, स्वर्ण निर्मित ईंटें, मृतभांड (प्राचीन काल के मटके), तथा लोहे के औजार आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
श्री तिवारी के जीवन की एक अत्यंत दुःखद घटना का भी उल्लेख किया गया — वर्ष 1961 में जब वे उज्जैन में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान पानी की टंकी गिरने की दुर्घटना में वीरगति को प्राप्त हुए। इस दुर्घटना में उनकी मृत्यु पर मध्यप्रदेश शासन द्वारा उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई थी। उनकी स्मृति आज भी छत्तीसगढ़ और विशेषकर मल्हार के लोगों के दिलों में जीवित है।
श्री तिवारी द्वारा प्रेरित होकर आज भी कई स्थानीय संग्रहकर्ता उनके द्वारा एकत्र की गई वस्तुओं को बड़े सहेजकर रखे हुए हैं। उनके संग्रह के आधार पर क्षेत्रीय इतिहास और संस्कृति पर शोध कर रहे विद्वानों एवं विद्यार्थियों को मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है।
नव संग्रहालय की आवश्यकता और जनसंवेदनशील पहल
सहकार भारती छत्तीसगढ़ का यह दौरा केवल एक औपचारिक निरीक्षण नहीं था, बल्कि यह सांस्कृतिक जागरूकता और सामाजिक उत्तरदायित्व की दिशा में एक ठोस पहल के रूप में देखा जा रहा है। श्री घनश्याम तिवारी ने कहा कि “छत्तीसगढ़ में मल्हार जैसे ऐतिहासिक नगरों को संरक्षित करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यहाँ की हर मूर्ति, हर प्रस्तरखंड हमें हमारे अतीत से जोड़ता है। यदि हम आज इसे नहीं सहेज पाए, तो कल हमारे पास केवल अफसोस ही बचेगा।”
उन्होंने यह भी मांग की कि मल्हार में एक नवीन भवनयुक्त संग्रहालय की स्थापना की जाए, जिसमें समस्त पाषाण मूर्तियों एवं प्राचीन वस्तुओं को वैज्ञानिक ढंग से संरक्षित किया जा सके। इसके साथ-साथ मल्हार में एक शोध केंद्र की भी स्थापना का सुझाव दिया गया, जहाँ पुरातत्वविद, इतिहासकार एवं शोधार्थी अध्ययन एवं अनुसंधान कर सकें।
समाप्ति में एक संकल्प
अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के इस अवसर पर सहकार भारती छत्तीसगढ़ द्वारा यह संदेश दिया गया कि हमारी सांस्कृतिक धरोहरें केवल अतीत की पहचान नहीं, बल्कि भविष्य की पूँजी हैं। इन्हें सुरक्षित रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। मल्हार की ऐतिहासिकता, श्री तिवारी जैसे समर्पित पुरातत्ववेत्ताओं की स्मृति और स्थानीय नागरिकों की सहभागिता से एक नई पहल की शुरुआत हो चुकी है। आवश्यकता है कि शासन, प्रशासन और समाज मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएँ।