July 7, 2025 8:21 am
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बिलासपुर संभाग

कथक नृत्यांगना तब्बू परवीन जहां मुस्लिम लड़कियों की उम्मीदों की चिराग़ बनी हैं, वहीं बस्तर-सरगुजा के इलाकों डाॅ. नरेंद ्रधु्रव, सृष्टि भदौरिया और डाॅ.सम्राट चाौधरी, जनजाति सहित समग्र वर्ग को कथक-नृत्य की शिक्षा देने समर्पित हैं। में डाॅ. नरेंद ्रधु्रव, सृष्टि भदौरिया और डाॅ.सम्राट चैधरी, जनजाति सहित समग्र वर्ग को कथक-नृत्य की शिक्षा देने समर्पित हैं। नर्तक

गुजि ़श्ता चार पांच दशक पहले रायगढ़ राजमहल के रिहायशी हिस्सों में गुजर-बसर वास्ते सालों साल एक गुमनाम
मुस्लिम शख्स भी किराएदार रहे। अलबत्ता अब बूढ़े हा े चुके कशीदाकार शेख हन्नान को कभी भी इस बात इल्म नहीं रहा हा ेगा
कि आने वाले वक्त में दुबई क े एक भव्य क ंनस्र्ट हाॅल में घू ँघरूओं की छनक, तबले की थाप और सारंगी की धुन की संगत में
उनकी इक्कीस साल की शहज़ादी तब्बू परवीन के पाँव उतनी ही स्फूर्ति से थिरकेगें जितनी कि कभी कशीदा-ज़री और ज़रदौज ़ी
का काम करते-करते उनके हाथों की उँगलियाँ मचलती खेलती रहा करती थीं। पूर्व डिप्टी सी.एम. श्री टी.एस.सिंहदेव जी और
जिंदल सीएसआर के स्पाॅसर्ड के भरोसे दुबई में शानदार स्टेज परफार्मेस देकर जब रायगढ़ लौटीं तभी तब्बू को कथक से नई
पहचान मिली, मुस्लिम जमात की आॅईडिल बनीं इव तरह कथक ने तब्बू की शिनाख्ती को बुलंदगी पर पहुँचाया।
कथक में मास्टर्स डिग ्री हा ेल्डर तब्बू कथक को अपनी इबादत से नवाज ़ते हुए अपनी अम्मीं तलत़ परवाीन की
जिरह करने के शग़ल को आत्मसात कर लाॅ ग्रेजुएट की तालीम भी कम्पलिट कर चुकीं हैं। फिलहाल छत्तीसगढ़ स्टेट बाॅर काउंसिल
की अधिवक्ताओं की फेहरिस्त में अपने नाम का नामांकन कराने की कवायद में ज ुटी है ं। शिद्दत से र्नइ पीढ़ी में कथक नृत्य शैली का
विस्तार करने क े साथ ही ज्युडिशियल सिस्टम की रखवाली करने का माद्दा रखने वाली तब्बू परवीन पूरे प्रदेश में अंर्तराष्ट्रीय कथक
नृत्यांगना हा ेने के साथ एडवोकेट बनकर पूरे रायगढ़ की लाड़ली हमशीरा होने का खिताब हासिल करेंगीं और मुस्लिम लड़कियों के
उम्मीदों की चराग़ तो बनेंगी ही। हालाँकि अपने वजूद आ ैर खानदान के नाम को अर्श तक पहुँचाने वाली तब्बू के शिखर में पहुँचने का
सफ़र बेहद त्रासदीपूर्ण और मुफ़लिसी के दायरे में रहा है लेकिन खुद के भीतर की ताक़त और बहनें तब्ब्सुम
खान, रज्जली परवीन भाई शा ेएब हुसैन का हमकदम रहना भी तब्बू क े शोहरत में इजाफा होने की बड़ी
वजहों में से एक है। बचपन से ही राजमहल में हुए शास्त्रीय नृत्य व संगीत में शिरकत करने वाले कलाकारों के जलवा अफ़रोज
की चकम धमक तब्बू के दिल क े भीतर घर कर गई और महज 10 साल की उम्र में इनके पाँव कथक की ओर कूच करने
लगे। इन्हीं लम्हा ें में तब्बू को स्थानीय कथक गुरू शरद वैष्णव का आशीर्वाद मिला और इनकी शार्गिदी और आईकाॅन बनीं
अम्मीं तलक ़ परवीन की रहनुमाई में कथक के तोड़े, ट ुकडे़, ठुमरी, चक्कर, घुँघ ुरूओ की छनक पर पकड़ आदि बारिकियाँ तब्बू
सीखती गईं और रियाज़ से रू-ब-रू भी होती गई। कभी कभार बेमन हा ेने बावज ूद कथक में महारत हासिल करने के हा ैसला
अफ़ज़ाई करने का श्रेय तब्बू अपने गुरू और अम्मीं को देतीं है। इसी बीच रज्जली बताती हैं कि कथक सीखने के शुरूवाती
दौर से ही महल्ले की अधिकांश मुस्लिम महिलाओं मर्दो ने बहा ेत जियादा ताने-बाने, उपेक्षापूर्ण बर्ताव और मजहब के खिलाफत
करने का भी इल्जामात लगाने थोपने लगे लेकिन अम्मी और अब्बू तब्बू के हिफ़ाजत में ढाल बनकर हमेशा मुस्तैद रहे। जब
दुबई सहित देश के दीगर शहरों क े आयोजनों से कथक का बेशुमार अवाॅर्ड लेकर रायगढ़ आने लगीं तब
जाकर समाज और बिरादरी में तब्बू और हम परिजनों को मान-सम्मान और इस्तेकबालिया सलाम मिलने लगा। अब बदले हुए हालात
ये है कि वही ओछी मानसिकता वाले मुस्लिमजन अब अपने लड़कियों को तब्बु क े डाँस अकादमी ‘‘आयात’’ में भेजने लगे, मिन्नतें
करने लगे कि इन्हें भी अपनी जैसी उम्दा कलाकार बनाईएगा, दुआएँ भी देते है कि खुदा तुम्हें सलामत रखे, इज्ज़त बख्शे। इस
तरह जाहिर है कि तब्बू का जीवन क़िताबों की तरह सजी हुई नहीं है, बल्कि धूल, पसीने और सख्त मेहनत से लिखी इबारत है।
लिहाजा तब्बू का नाम सिर्फ नाम नहीं बल्कि दीगर लड़कियों क े लिए भी बदलाव की पहचान बन गई है। अपने मुस्लिम जमात
सहित दीगर सभी जात की लड़कियों क े लिए तब्बू पैगाम देतीं हैं किसी भी कला का कोई मजहब, कोई धर्म नहीं हा ेता, कोई भी
कला छोटी नहीं हा ेती आप अपने सपने बड़े किजिए सामाजिक बंधन, रोकटोक, ताने-बाने की परवाह ना करिए और खुद की पहचान
गढ़ने क े लिए अपने ख्वाबों को हकीकत में बदलिए-देखिएगा देखने वालों का नजरिया यूँ ही बदल जाएगा……..आमीन कहने की साथ खिलखिलाते हुए
आलु गोभी की तरक़ारी बनाने चलीं गई। 2004-05 साल में बारहवीं पास करने के बाद मेडिकल डाॅक्टर बनने का सपना संजोए एक आदिवासी नवयुवक
को अपने पिता श्री राधेश्याम जी क े एक फरमान से उपजे धर्मसंकट का सामना करना पड़ गया जब नवयुवक से कहा गया कि तुम्हें मेडिकल या फार्मेसी
नहीं बल्कि आर्ट्स में क ेरियर बनाना है। सपना टूटता देख इस नवयुवक को बहन मीनाक्षी और बडे़ भाई मनोज की दी गई सलाह कि पीएचडी करने से
भी डाॅक्टर बनते हैं, को याद करते ही कहा कि आप की बात मान लूंगा पापा यदि आप मुझे पीएचडी भी कराएंगे। माँ श्रीमति सावित्री देवी आ ैर पिता की
हामी भरते ही इस नवयुवक ने खुशी-खुशी इंदिरा कला संगीत यूनिवर्सिटी खैरागढ़ में बी.ए. (आनर्स) में दाखिला तो ले लिया लेकिन पूरी पढ़ाई लिखाई म ें
आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा था। डाॅक्टर लिखने के ख्वाब को पूरा करने के पहले फेज में यह नवयुवक गे्रज ुएट तो हुआ ही साथ ही रानी
पद्मावती स्मृति स्वर्ण पदक का तमगा लेकर मास्टर्स में यूनिवर्सिटी का टाॅपर भी रहा। कथक नृत्य क े संदर्भ में पीएचडी हासिल कर डाॅक्टर बनने क े खुद
क े जूनुन-जज्बा को ना क ेवल हकीकत में तब्दील किया बल्कि बतौर कथक गुरू जिसमें प्रमुखतः उदयपुर (अंबिकापुर) की सृष्टि भदौरिया सहित अब तक
अनगिनत छात्र-छात्राओं को नृत्य कला में महारती भी बनाते जा रहे हैं। खुद क े साथ गुजरे इस वाक्यात को बेहद खुशी और फक़र से जाहिर करते हैं,
डाॅक्टर नरेंद्र धु्रव। डाॅक्टर नरेंद्र क ुमार को कथक नृत्य का धु्रव तारा बनाने में यूनिवर्सिटी की अज़ीम शख्सियत डाॅ. नीता गहरवार, गुरू रंजिता भुईयाँ,
पंडित विवेक देशमुख जी, (मशहूर तबता वादक) सहित अन्य की भूमिका अनुकरणीय रही है। नरेंद्र वर्तमान में जगदलपुर (आसना) क े नवीन शासकीय
संगीत महाविद्यालय में बतौर गेस्ट प्रोफेसर है। आॅनलाईन सहित दीगर माध्यमों से भी देश-विदेश क े युवक-युवतियों को कथक नृत्य कला एवं संगीत की
शिक्षा देने का कार्य भी कर रहे है। दूरदर्शन क े बी ग्रेड आर्टिस्ट हा ेने क े अलावा फरवरी 2024 मे ं खज ुराहो महा ेत्सव कें कथक कुम्भ में शिरकत करने से
गिनिजबुक में वल्र्ड रिकाॅर्ड बनाने का भी नरेंद्र को गौरव प्राप्त है। साल 2023 में ‘‘दशरूपक ग्रंथ में वर्णित नृत्योपयोगी तत्व और कथक नृत्य’’ संबंधी
पुस्तक प्रकाशित करने का भी इन्हें श्रेय है। नृत्य कला क े जरिए नवोदित कलाकारों को नृत्य संगीत की तालीम देने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाले नरेद्र
की धर्मपत्नी रम्भा धु्रव भी सामान्य गृहणी होने क े बावजूद अपने पति क े साथ ताल से ताल मिलाते हुए दाम्पत्य को खुशहाली दे रहीं है। इनके दादा
स्वर्गीय मदन सिंह तारम सारंगी की तरह दिखने वाला ‘‘चिकारा’’ वाद्य यंत्र क े वादक होने क े साथ साथ जनजातीय लोक नर्तक भी थे। सृष्टि भदौरिया
भी एक कथक नृत्यांगना है, सरगुजा जिले क े उदयपुर (अंबिकापुर) से है ं। इनकी मम्मी कल्पना भदौरिया गृहणी हैं, पापा श्री देवेंद्र भदौरिया स्टेशनरी व
खेलक ूद सामानों के दुकानदार हैं। सृष्टि बतातीं हैं कि बचपन से ही डाँस का शौक था, डास को लेके मम्मी मुझे बहुत सपोर्ट करती थीं। महा ेत्सवों में,
दुर्गा पूजा में, छोटे-छोटे प्रतियोगिताआ ें में मुझ े ले क े जातीं रहतीं थी मम्मी। टीवी में जो एड्स आते थ े, उसमें भी मै ं डाँस करती थी। जब घर में सब एक
साथ बैठ कर टीवी देखते थ े तो मुझे गाना लगाकर डाँस करना होता था। बहुत डाँट भी पड़ती थी। टीवी के सामने खड़े हा ेकर दिन दिन भर म्युजिक में
हाथ पैर चलता ही रहता था कई बार पिटाई भी हुई कि प़ढ़ाई लिखाई करना नहीं इसक े बस डाँस करने को बोल दो, पढ़ने को बा ेलो तो तबियत खराब
हा े जाती है इसकी। 12वीं के बाद मुझे काॅलेज भी करना था और डाँस की भी पढ़ाई करनी थी। इसक े लिए मैने सबसे पहले स्वप्निल भईया, जो कि
इंदिरा कला संगीत वि.वि. में गायन की पढ़ाई कर रहे थ े, ने मुझे अच्छी सलाह दी कि तू कथक कर ले। उस समय मुझे कथक का कोई भी ज्ञान नहीं
था। पापा ने मना किया कि पहले बी.ए. कर लो फिर ये सब करते रहना। तब उस वक्त मम्मी ने बहुत समझाया पापा को फिर वे मान गए फिर मम्मी
डाॅ. नरेन्द ्र ध्रुव
डाॅ. सम्रट चैधरी
तब्बू परवीन
स ृष्टि भदौरिया
पापा के साथ खैरागढ़ गए। इंदिरा कला-संगीत वि.वि. में इंट्र ंेस परीक्षा पास करने के बाद कथक में एडमिशन हुआ, एडनिशल सब्जेक्ट में लोक संगीत
मिला, जिसमें मैनें अलग-अलग जगहों क े नृत्य व गीत सीखा और प्रोग्राम भी किए। कथक की शिक्षा मेरे गुरू डाॅ. नरेंद ्र ध्रुव, जो अभी नवीन शास. संगीत
महावि़द्यालय जगदलपुर में कार्यरत हैं, के नेतृत्व मे ं हुई है। धु्रव सर मुझे बहुत सजा भी देते थ े, डाॅटा भी करते थे, कक्षा से बाहर भी कर दिए रहे। इस
वजह से उन पर बहुत गुस्सा भी आता था, पर अब वो सब यादें सोच-सोच कर मुझे अच्छा लगता है कि इतनी डाँट नहीं मिली हा ेती, तो शायद आज
मेरा कथक के क्ष ेत्र में इतना आगे पहंुचना असंभव था। एम.पी.ए. करने क े दौरान ही दूरदर्शन में बी गे्रड आर्टिस्ट क े एक्जाम में भी सफलता पाई। यूनिवर्सिटी
क े कथक विभाग की डीन और एच.ओ.डी डाॅ.नीता गहरवार का मुझे सानिध्य मिला एक माँ की तरह हम सभी बच्चों को प्यार देती थीं नीता मैम। मुझे
अपने इन गुरूओं से कथक ही नहीं बल्कि शाँत रहकर हर समस्या या चीजों को क ैसे सम्भालना है ऐसे बहुत क ुछ सीख सीखने को मिला है। इन्होनें इन्हें
अपना गुरू भी बनाया। अरे हाँ मैं तो यह बताना भूल ही जा रही थी कि जब मैं बी.ए. सेक ंेड ईयर म ें थी तब मै ं कथक गुरू समीक्षा शर्मा जी से यूनिवर्सिर्टी
में मिली। वा े कथक क ेंद्र नई दिल्ली क े क ुछ बच्चों को खैरागढ़ में आयोजित कार्यशाला के लिए लेकर आईं थीं। इनका नृत्य देखते ही मेर े मन में भी एक
बात आई मुझे जीवन में इन्हीं गुरू जी से भी ही सीखना है, और आगे उनसे सीखने के लिए मैनें अपने मास्टर्स की पढ़ाई तक मैं बहुत ही मेहनत की है।
जब मैंने कथक क ंेद्र की परीक्षा दी तब मुझे मेरी गुरू समीक्षा शर्मा जी से नृत्य की शैलियाँ सीखने का सौभाग्य मिला। मैं अपने सभी गुरूओं की हमेशा
आभारी रहूँगी, जिन्होनें मुझे हमेष्ँाा प्रेरित किये, आगे बढ़ने में बहुत ही मदद की है, और मुझपे हमेशा विश्वास किया है। अपने सभी गुरूओं को मेरा प्रणाम।
रामगढ महा ेत्सव, मैनपाठ महोत्सव, सरगुजा महोत्सव, राज्योत्सव, राज्य स्तरीय युवा-महोत्सव आदि जगहों में अनेकों परफार्मेस भी दिए हैं। रामगढढ़। विभिन्न
विद्यालयों में भी जाकर वर्क शाॅप करती हूँ। मुझे गर्व है कि अपने ही वि.वि. में परीक्षक के बतौर मैंने प्रेक्टिकल एक्जाम भी ली है। फिलहाल मैं अंबिकापुर
में डाँस अकेडमी में कथक की शिक्षा दे रही हूँ, जिसमें सभी वर्ग, जाति, धर्म क े बच्चे कथक नृत्य और संगीत की शिक्षा ले रहे हैं। धुर नक्सली प्रभावित
इलाका दक्षित बस्तर के दंतेवाड़ा क े जावँगा गाँव स्थित काॅलेज के कथक व्याख्यता डाॅ.सम्राट चा ैधरी का पैदाईशी यूँ देश क े उत्तर पूर्वांचल राज्य त्रिपुरा
में हुई है, स्थानीय आॅगनबाड़ी शिक्षिका माँ और पुलिस आफिसर पिता क े इकलौते संतान हा ेने क े बावज ूद विगत डेढ़-दो दशक से छत्तीसगढ़ को अपना
कर्मभूमि बनाए हुए है ं, जबकि पूरा परिवार अभी भी उनकी मातृभूमि त्रिपुरा में रचा-बसा हुआ है। सम्राट जी बताते है ं कि बचपन से इन्हें चित्रकला और
नृत्य क े प्रति रूझान रहा है, परिवार और लोगों का यह कहना कि लड़का होकर डाँस करेगा का जवाब बेहद मासूमियत से देते रहे है ं कि क्या नटराज
शिव और नटवर क ृष्ण पुरूष नहीं थे, इस तरह नृत्य में क ेवल स्त्रियों का एकाधिकार होने के मिथक को खंडित करते हुए इस युवा नर्तक का शुरू से ही
मानना रहा है कि कथक या किसी भी कला को लिंग विचार से जोड़ना नहीं चाहिए। कथक हमारी पौराणिक धरोहर और भारतीय सांस्क ृतिक परम्परा ह ै,
जिसक े संरक्षण और प्रचार प्रसार करने में कला के कद्रदानों को अग्रसर हा ेते रहना चाहिए। इस सोच के साथ सम्राट चैधरी भी खैरागढ़ के कला-संगीत
वि.वि. में डाॅ. माण्डवी सिंह की छत्रछाया में कथक की शिक्षा दीक्षा लेकर खुद को कथक के एक और डाॅ. सम्राट के बतौर मुक्कमल करने में कामयाब हो
गए। शुरूवाती में इनके प्रेरणा स्त्रोत डाॅ.देवज्योति लस्कर रहे है ं और इन्होने ही नृत्य के प्रति इनके विवेक को जागृत किए। नृत्य अभ्यास क े दौरान ही
इन्हें नृत्य सम्राट पद ्म विभूषण पंडित बिरजू जी महाराज के दर्शन, आशीर्वाद और सानिध्य मिलने से कथक करने का इनका उत्साह दुगुना हा े गया। डाॅचा ैधरी ने श्रीलंका, नेपाल के अलावा अन्य देशा ें में और देश के राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री निवास सहित विभिन्न राज्यों, शहरों क े आयोजनों, महा ेत्सवों में
कथक की बेमिसाल प्रस्तुतियाँ दी हैं। खुद क े अकादमी से आॅनलाईन क े मार्फत कथक क े प्रचार प्रसार और शिक्षा में शिद्दत से जुटे डाॅ.सम ्राटा दंतेवाड़ा
क े पूर्व कलेक्टर श्री मयंम चतुर्वेदी क े कार्यकाल में वहाँ के आवासीय काॅलेज परिसर में आदिवासी बच्चों को नृत्य एवं संगीत की शिक्षा देने क े अभियायान का बखूबी संचालन कर रहे हैं।

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