दंतेवाड़ा: माओवाद के खात्मे के लिए फोर्स पूरी मुस्तैदी और जांबाजी से बस्तर के घने जंगलों को खंगाल रही है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि 31 मार्च 2026 तक माओवाद पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा. केंद्रीय गृहमंत्री और सीएम साय के ऐलान के बाद बस्तर में एंटी नक्सल ऑपरेशन जोर शोर से चल रहा है. केंद्रीय गृहमंत्री ने बीते दिनों ही कहा था कि मानसून में भी हम माओवादियों को चैन से बैठने नहीं देंगे. मूसलाधार बारिश और उफनते नदी नालों को पार कर जवान माओवादियों के कोर एरिया में सर्चिंग करेंगे.
ऑपरेशन मानसून: बारिश के दौरान अक्सर नक्सली संगठन सुरक्षित ठिकानों पर जाकर छिप जाते थे. मानसून खत्म होने के बाद अपनी कायराना हरकतों को अंजाम देते थे. इस बार बारिश के दौरान भी जोर शोर से नक्सल विरोधी अभियान चलाया जा रहा है. नक्सल विरोधी अभियान पहले भी मानसून में चलाया जाता रहा है. लेकिन इस बार फोर्स के सामने 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद का सफाया करने का लक्ष्य है. टारगेट को हासिल करने के लिए फोर्स पूरी ताकत से ऑपरेशन मानसून में जुटी है.
बरसात के मौसम में भी नक्सलगढ़ में सर्चिंग अभियान जारी है. जवान कई दिनों तक जंगलों में डटे रहते हैं, जहां मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा बना रहता है. इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए जवानों को विशेष स्वास्थ्य किट मुहैया कराई गई है, ताकि वे जंगल में प्राथमिक उपचार कर सकें और खुद को सुरक्षित रख सकें. सर्चिंग से लौटने के बाद हर जवान का मेडिकल परीक्षण किया जाता है और उन्हें पर्याप्त बैकअप और आराम दिया जाता है, ताकि उनकी सेहत बनी रहे और ऑपरेशन में कोई बाधा न आए: गौरव राय, एसपी, दंतेवाड़ा
क्यों बैकफुट पर हैं नक्सली: दरअसल लगातार माओवादी विचारधारा से आदिवासियों का मोहभंग होता जा रहा है. बड़ी संख्या में माओवादी हथियार डालकर समाज की मुख्यधारा में शामिल रहे हैं. स्किल डेवलपमेंट का कोर्स करने के बाद सरेंडर माओवादी आम जिंदगी में अपना और अपने परिवार का पेट भर रहे हैं. शासन की नई पुनर्वास नीति इसमें अहम भूमिका अदा कर रही है. नक्सली संगठन से आदिवासियों का मोहभंग होने से नक्सलियों का नेटवर्क कमजोर हुआ है.
बड़े लीडर मारे गए: बसव राजू जैसे बड़े लीडरों के मारे जाने के चलते नक्सली संगठन की कमर टूट चुकी है. बड़े लीडर के खत्म होने से संगठन को लीड करना माओवादियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. नक्सली संगठन के लिए निचले स्तर पर काम करने वाले लोग डरे हुए हैं. उनको मालूम है कि जब बड़े लीडर सुरक्षित नहीं हैं तो उनका क्या हाल होगा.
बीमारी से मरे कई बड़े नक्सली लीडर: लगातार जंगलों में रहने से कई नक्सली नेता और काडर के लोग मलेरिया, चिकनगुनिया जैसे गंभीर बीमारियों के धीरे धीरे शिकार हो गए. इलाज की कमी से कई नक्सली नेताओं की मौत हो गई. ‘ऑपरेशन मानसून’ के तहत CRPF, DRG और STF की संयुक्त टीमें लगातार दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर के दुर्गम इलाकों में अभियान चला रही है. फोर्स की कोशिश है कि जो बचे खुचे नक्सली हैं उनको भी जल्द से जल्द न्यूट्रलाइज कर दिया जाए.