August 3, 2025 4:35 pm
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177 पुलिस और सुरक्षाकर्मियों ने 2019 से अबतक छत्तीसगढ़ में जान दी, विधानसभा में सरकार ने दी जानकारी

रायपुर: विधानसभा को बुधवार को बताया गया कि पिछले साढ़े छह वर्षों में राज्य में अर्धसैनिक बलों के लगभग 40 जवानों सहित 177 सुरक्षा और पुलिस कर्मियों ने आत्महत्या की है. पुलिस जांच में पाया गया है कि इन घटनाओं के पीछे पारिवारिक, व्यक्तिगत मुद्दे और स्वास्थ्य संबंधी कारण जिम्मेदार थे. वरिष्ठ भाजपा विधायक अजय चंद्राकर के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में, उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा, जो गृह विभाग भी संभालते हैं, ने सुरक्षा कर्मियों द्वारा आत्महत्या और उनकी हत्या के मामलों की जानकारी दी.

177 सुरक्षाकर्मियों ने जान दी: डिप्टी सीएम के जवाब के अनुसार, 2019 से 15 जून, 2025 के बीच राज्य में 177 सुरक्षाकर्मियों ने जान दी. इनमें से 26 कर्मी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के, 5 सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के, 3 भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के और 1-1 कर्मी सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) और त्रिपुरा राज्य राइफल्स के थे. चंद्राकर के सवाल के जवाब में कहा गया है कि आत्महत्या करने वाले अन्य कर्मी राज्य पुलिस की विभिन्न शाखाओं से संबंधित थे, जिनमें छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, विशेष कार्य बल और होमगार्ड शामिल हैं.

बस्तर में है जवानों की तैनाती: राज्य में नक्सल विरोधी अभियानों के लिए सीआरपीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी को बड़े पैमाने पर तैनात किया गया है. सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार, 2019 में 25 सुरक्षाकर्मियों ने, 2020 में 38 ने, 2021 में 24 ने, 2022 में 31 ने, 2023 में 22 ने, 2024 में 29 ने और 2025 में 8 ने (15 जून तक) अलग अलग कारणों से जान दी. पिछले साढ़े छह वर्षों के दौरान, अर्धसैनिक बलों के जवानों सहित 18 सुरक्षाकर्मी हत्या की घटनाओं में शामिल रहे. जिनमें जवानों ने अपने साथियों पर गोलिया चलाईं.

डिप्टी सीएम ने दिया जवाब: उपमुख्यमंत्री शर्मा के लिखित उत्तर में आगे कहा गया है कि किसी भी घटना के घटित होने पर, पुलिस में मामला दर्ज करके जांच की जाती है. जांच के दौरान, आगे की कार्रवाई के लिए विभागीय अधिकारियों/कर्मचारियों, मृतक के परिजनों और अन्य गवाहों के बयान लिए जाते हैं. सरकारी जवाब में कहा गया है कि ऐसे मामलों की जांच में पाया गया है कि अधिकारी/कर्मचारी मुख्यतः पारिवारिक, व्यक्तिगत समस्याओं, शराब की लत, स्वास्थ्य कारणों और अचानक गुस्से के कारण इस तरह की वारदात होती है.

हेल्थ और तनाव बड़ा कारण: सभी पुलिस अधीक्षक/कमांडर अपने अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों/कर्मचारियों के बीच पारिवारिक समस्याओं, अवसाद और मानसिक तनाव के बारे में मनोचिकित्सकों द्वारा परामर्श जैसी कल्याणकारी गतिविधिया चला रहे हैं. वरिष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थों के लिए समूह परामर्श, नियमित अवकाश और योग एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी कर रहे हैं. वित्तीय समस्याओं से निपटने के लिए जिला/बटालियन स्तर पर पुलिस बैंक सुविधा प्रदान की गई है। उत्तर के अनुसार, नशामुक्ति के लिए प्रेरक सत्र आयोजित किए जाते हैं और शराब के आदी लोगों को पुनर्वास केंद्रों में इलाज कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

क्या है व्यवस्था: कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर स्तर तक के अधिकारियों/कर्मचारियों को हर साल 13 महीने का वेतन दिया जाता है. कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रत्येक पुलिस स्टेशन और कंपनी स्तर पर एक शिकायत रजिस्टर रखा जाता है. जिला पुलिस अधीक्षक/कमांडर नियमित रूप से कर्मचारियों की शिकायतें सुनते हैं और उनका समाधान करने का प्रयास करते हैं.

शिकायतों का निकाला जाता है समाधान: निरीक्षण के दौरान, वरिष्ठ अधिकारी कर्मचारियों की शिकायतें भी सुनते हैं और उनके समाधान के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. सरकार ने सदन को बताया कि हर साल राज्य/ज़िला स्तरीय सलाहकार समिति कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान के लिए बैठक करती है. पुलिस महानिदेशक हर हफ्ते मंगलवार और शुक्रवार को पुलिस मुख्यालय में कर्मचारियों की शिकायतें सुनते हैं और उनका जल्द से जल्द समाधान करते हैं.

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