IDBI बैंक के निजीकरण का विरोध, 11अगस्त को देशव्यापी हड़ताल के समर्थन में रायपुर में प्रदर्शन

रायपुर: ट्रेड यूनियनों का कहना है कि वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि IDBI बैंक का निजीकरण किया जाएगा. सरकार के फैसले के खिलाफ बैंक, बीमा क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों ने 11 अगस्त को IDBI कर्मचारियों के देशव्यापी हड़ताल का समर्थन किया. बीमा क्षेत्र में 100% एफ डी आई का निर्णय रद्द करने, रीजनल रूरल बैंक के सरकारी हिस्से की पूंजी के विनिवेशीकरण का फैसला और IDBI का निजीकरण रद्द करने की मांग को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.
IDBI बैंक के निजीकरण का विरोध: प्रदर्शन को लेकर एआईआईईए के संयुक्त सचिव धर्मराज महापात्र ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सरकार और LIC द्वारा वर्तमान में जो 95% इक्विटी होल्डिंग है. उसका एक बड़ा हिस्सा बेचने का सरकार का इरादा है. इस प्रस्तावित विनिवेश के बाद सरकार के पास केवल 15.24% और LIC के पास 18.76% हिस्सा बचेगा. यानी दोनों के पास कुल मिलाकर केवल 34% हिस्सेदारी रहेगी. इसका मतलब है कि IDBI बैंक की 66% पूंजी किसी निजी निवेशक के हाथों में चली जाएगी. इसलिए यह प्रस्ताव सीधे तौर पर बैंक का निजीकरण है. IDBI की स्थापना RBI से अलग होकर 1964 में एक विकास वित्त संस्था (DFI) के रूप में हुई थी.
सामान्य वाणिज्यिक बैंक: एआईआईईए के संयुक्त सचिव धर्मराज महापात्र ने कहा कि 2005 में IDBI का विलय उसकी अपनी सहायक संस्था IDBI बैंक से कर दिया गया और तब से यह एक सामान्य वाणिज्यिक बैंक की तरह काम कर रहा है. फिलहाल इसकी 95% पूंजी सरकार (45.48%) और LIC (49.24%) के पास है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जो बोलीदाता इस बैंक को खरीदना चाहते हैं, वे कनाडा और दुबई जैसे विदेशी निवेशक हैं. अतः यह न सिर्फ निजीकरण है, बल्कि वास्तव में विदेशीकरण भी है. शर्म की बात है कि स्वयं को राष्ट्रभक्त कहने वाली सरकार इसे विदेशी हाथों में बेच रही है. गौतलब हो कि कुछ वर्ष पहले दक्षिण भारत स्थित लक्ष्मी विलास बैंक को सिंगापुर स्थित DBS बैंक ने खरीदा था. उससे पहले, फेयरफैक्स (कनाडा) ने CSB बैंक (पूर्व में कैथोलिक सीरियन बैंक) में मुख्य निवेशक की भूमिका निभाई थी: धर्मराज महापात्र, एआईआईईए के संयुक्त सचिव
IDBI अधिनियम: एआईआईईए के संयुक्त सचिव धर्मराज महापात्र ने कहा कि FII और FDI के लिए बैंकिंग क्षेत्र में निवेश और मतदान अधिकारों पर अब तक कुछ सीमाएं थीं, जिससे इनका प्रभाव सीमित था. लेकिन अब सरकार इन निवेशों को उदार बनाने के प्रयास कर रही है. जब IDBI अधिनियम को दिसंबर 2003 में निरस्त किया गया. उस समय तत्कालीन भाजपा सरकार (तत्कालीन वित्त मंत्री जसवंत सिंह) ने संसद में यह आश्वासन दिया था कि किसी भी समय सरकार IDBI बैंक में 51% से कम पूंजी नहीं रखेगी. लेकिन आज अपने शेयर बेचकर सरकार की हिस्सेदारी सिर्फ 15% रह जाएगी. क्या यही है आत्मनिर्भर भारत जिसकी बात सरकार कर रही है ?
निजी निवेशक: एआईआईईए के संयुक्त सचिव धर्मराज महापात्र ने कहा कि वर्तमान में IDBI बैंक के पास लगभग 3 लाख करोड़ की जनता की जमा राशि है. यदि यह बैंक किसी निजी निवेशक को बेचा जाता है, तो यह पूरी बचत उस निजी निवेशक को सौंप दी जाएगी. इसी तरह साल 2023, 2024 और 2025 में बैंक ने 30,000 करोड़ रुपए का परिचालन लाभ अर्जित किया है. इस प्रकार के विशाल मुनाफे का फायदा निजी निवेशक को मिलेगा. महापात्र ने कहा कि यह जनता के पैसे की खुली लूट है. उन्होंने आम जनता से भी IDBI कर्मचारियों के 11 अगस्त के हड़ताल के समर्थन की अपील की.