रजनीकांत की ‘कुली’ देखने का है प्लान? पहले पढ़ लें रिव्यू, कहीं पछताना न पड़ जाए

रजनीकांत का नाम सुनते ही सबसे पहले दिमाग में क्या आता है? सिगरेट को हवा में उछालकर लपकना, चश्मा स्टाइल से पहनना और वो खास चाल. अगर आप ये सब मिस कर रहे थे, तो घबराइए मत, क्योंकि लोकेश कनगराज ‘कुली’ में वो सब कुछ वापस लेकर आए हैं. ‘कुली’ एक ऐसी फिल्म है, जो आपको सीधा 80 और 90 के दशक में ले जाती है, जब रजनीकांत का जादू सिर चढ़कर बोलता था. इस फिल्म रजनीकांत के 50 साल के फिल्मी सफर को एक ऐसा ट्रिब्यूट दिया है, जिसे देखकर उनका हर फैन गर्व महसूस करेगा.
कुली में रजनीकांत का वही पुराना वाला चार्म, वही अंदाज और वही स्टाइल है, जिसे देखकर हम सब बड़े हुए हैं. लेकिन क्या इस फिल्म में सिर्फ यही सब है? क्या ये सिर्फ एक मसाला फिल्म बनकर रह गई है? इसकी क्या खूबी और कहां कमी रह गई? आइए जानते हैं.
कुली फिल्म की कहानी क्या है?
कहानी की शुरुआत होती है एक बड़े बंदरगाह से, जिसे साइमन (नागार्जुन) चलाता है. ये बंदरगाह सिर्फ जहाजों के आने-जाने का अड्डा नहीं है, बल्कि यहां सोने और हीरे से भी महंगी घड़ियों की तस्करी होती है. इस पूरे गोरखधंधे को साइमन का दाहिना हाथ दयाल (सौबिन शाहिर)संभालता है. इसी बंदरगाह पर 14,400 मजदूर, जिन्हें ‘कुलियों’ के नाम से जाना जाता है, काम करते हैं.
दूसरी तरफ, हम मिलते हैं देवराज उर्फ देवा (रजनीकांत) से. देवा एक आलीशान हवेली में रहता है, जिसे उसने हॉस्टल की तरह बनाया हुआ है. इस हॉस्टल के कमरे को वो छात्रों और जरूरतमंदों को मामूली किराए पर रहने के लिए देता है. एक दिन देवा को खबर मिलती है कि उसके पुराने दोस्त राजशेखर (सत्यराज) का निधन हो गया है. जब वो राजशेखर के घर जाता है, तब उनकी बेटी प्रीति (श्रुति हासन) उसे बेइज्जत करके घर से निकाल देती है.
ऑटोप्सी रिपोर्ट में राजशेखर की मौत की वजह हार्ट अटैक बताई जाती है, लेकिन देवा को एक असली रिपोर्ट मिलती है, जिससे पता चलता है कि उसकी मौत छाती पर कई वारों की वजह से हुई थी. देवा जब इस मामले की जांच करता है, तो उसे अपने एक दोस्त से पता चलता है कि 5 साल पहले राजशेखर ने आवारा कुत्तों और पालतू जानवरों के लिए एक मोबाइल श्मशान बनाया था, जो प्रदूषण को कम करने में मदद करता था. लेकिन उसके इस आविष्कार का पेटेंट खारिज किया जाता है क्योंकि अधिकारियों को लगता है कि अगर ये गलत हाथों में पड़ गया तो खतरनाक हो सकता है. लेकिन साइमन को इस श्मशान के बारे में पता चलता है. आगे जो कुछ सामने आता है वह चौंकाने वाला और दिमाग हिला देने वाला है और आपको ये देखने के लिए थिएटर का रूख करना होगा.
कैसी है फिल्म कुली?
‘कुली’ एक धमाकेदार फिल्म है. इसे रजनीकांत के 50 साल के सफल फिल्मी सफर का एक बड़ा जश्न भी कह सकते हैं. इसे देखने के बाद आप सिनेमाहॉल से बाहर मुस्कुराते हुए निकलेंगे. इस फिल्म में एक्शन, इमोशन और ड्रामा का ऐसा तड़का है, जो आपको आखिर तक अपनी सीट से हिलने नहीं देगा. इसकी कहानी थोड़ी कॉमन और प्रेडिक्टेबल लग सकती है, लेकिन जिस शानदार तरीके से इसे दिखाया गया है, वो कमाल है. खासकर, क्लाइमेक्स में इतने जबरदस्त ट्विस्ट हैं कि आप हैरान रह जाएंगे. वॉर 2 वालों को इससे सीखना चाहिए.
फिल्म की सारी जान रजनीकांत में बसी है. साथ ही, आमिर खान का कैमियो और उपेंद्र की एंट्री फिल्म के आखिरी हिस्से को और भी रोमांचक बना देती है.
कुली का निर्देशन कैसा?
लोकेश कनगराज को उनकी स्टाइलिश और मास-ओरिएंटेड फिल्मों के लिए जाना जाता है. उन्होंने एक बार फिर अपनी सिग्नेचर स्टाइल को कुली में बखूबी पेश किया है. उन्होंने फिल्म को एक खास अंदाज में बनाया है, जिसमें धमाकेदार बैकग्राउंड म्यूजिक, रॉ एक्शन सीक्वेंस और एक शानदार कास्ट का परफ़ेक्ट कॉम्बिनेशन देखने को मिलता है. उन्होंने रजनीकांत को बहुत समय बाद एक ऐसे अवतार में दिखाया है, जिसे देखकर उनके फैंस खुशी से झूम उठेंगे.
हालांकि, कुछ जगह पर ये फिल्म उनकी पिछली फिल्मों जैसे विक्रम या कैथी की तरह बेहतरीन नहीं लगती, लेकिन फिर भी इसे देखकर आप जोर से ताली बजाने पर मजबूर हो जाते हैं. लोकेश ने हर सीन को बड़े पर्दे के लिए बनाया है, और यही वजह है कि इसे सिनेमा हॉल में देखना ही सबसे सही होगा. उन्होंने कहानी को इस तरह से बुना है कि वो आप अपनी सीट से हिल नहीं पाते हैं. जाहिर सी बात है, इसका श्रेय फिल्म के एक्टर्स को भी जाता है.
एक्टिंग
कुली को पूरी तरह से रजनीकांत ने अपने कंधों पर संभाला है. उनका स्टाइल बेजोड़ है. एक्शन सीक्वेंस से लेकर डांस नंबर्स और वन-लाइनर्स तक, उन्होंने हर फ्रेम में अपना जादू बिखेरा है. साइमन के रूप में नागार्जुन ने एक खूंखार, खतरनाक विलेन का किरदार निभाया है, कई जगह ये विलेन बड़ा एंटरटेनिंग लगता है. उनकी वर्सेटैलिटी वाकई हैरान करने वाली है और उन्होंने रजनीकांत को कड़ी टक्कर दी है.
दयाल के किरदार में सौबिन शाहिर ने सबका ध्यान खींचा है. वो एक चालाक, खतरनाक और साइकिक किलर के रूप में आपके अपने दिमाग पर ऐसा गहरा असर छोड़ते हैं कि उनसे डर लगने लगता है. उनकी परफॉर्मेंस वाकई कमाल की है. प्रीति के रूप में श्रुति हासन सही लगती हैं. इमोशनल सीन्स में वो काफी प्रभावशाली लगी हैं.
दाहा के रूप में आमिर खान का कैमियो एक प्योर मास मोमेंट है. वो और रजनीकांत जब एक फ्रेम में आते हैं, तब पूरा पैसा वसूल हो जाता है. उपेंद्र का कैमियो भी एक विजुअल ट्रीट है, जो कहानी में एक नया मोड़ लाता है.
म्यूजिक
फिल्म का म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की जान है. अनिरुद्ध रविचंदर ने एक बार फिर जादू कर दिखाया है. उनके चार्टबस्टर ट्रैक और हाई-एनर्जी बीजीएम फिल्म के हर सीन को और भी दमदार बनाते हैं. जब भी स्क्रीन पर रजनीकांत की एंट्री होती है, तो बीजीएम सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. हर एक्शन सीक्वेंस और इमोशनल सीन में म्यूजिक पूरी तरह से फिट बैठता है.
देखें या न देखे ?
अगर आप रजनीकांत के डाई-हार्ड फैन हैं, तो ये फिल्म आपके लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है. इसमें रजनीकांत का वो अंदाज देखने मिलता है, जो आपको सालों से देखने को नहीं मिला था. लेकिन फिल्म की कहानी कई जगह प्रेडिक्टेबल लग सकती है. पर इसमें कुछ इमोशनल सीन उतने प्रभावी नहीं हैं, जितने होने चाहिए थे. अगर आपको मसाला फिल्में पसंद नहीं, तो ये आपके लिए नहीं है.
कुल मिलाकर, कुली एक ऐसी फिल्म है जिसे आपको बड़े पर्दे पर ही देखना चाहिए. ये एक मास एंटरटेनर है जो आपसे पैसा वसूल मनोरंजन का वादा करती है. तो देर किस बात की? और हां, ये फिल्म आपको एक ऐसे मोड़ पर लाकर छोड़ देगी, जहां आप अगली कहानी का बेसब्री से इंतजार करेंगे. फिल्म के आखिरी सीन में बड़ा सरप्राइज है, तो तैयार रहिए, क्योंकि ये सिर्फ शुरुआत है.