April 25, 2025 12:50 am
ब्रेकिंग
लू के लक्षण एवं बचाव के संबंध में स्वास्थ्य विभाग ने दी जानकारी नगरपालिका परिषद की पीआईसी बैठक में 02 करोड़ के विकास कार्यों को मिली मंजूरी - पहलगाम में आतंकवादी हमले में मृतक पर्यटकों को दी गई भावपूर्ण श्रद्धांजलि | नव पदस्थ पुलिस महानिरीक्षक दीपक कुमार झा द्वारा सरगुजा रेंज का पदभार ग्रहण किया गया दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे सुरक्षा बल के द्वारा “ऑपरेशन महिला सुरक्षा” एवं अन्य विशेष अभियान के तहत किए... बागबहार ग्राम सभा में गूंजा जल जीवन मिशन का मामला बागबहार ग्राम सभा में गूंजा जल जीवन मिशन का मामला पति - पत्नी का झगड़ा छुड़ाने गये बड़े भाई की छोटे भाई ने कर दी हत्या स्थाई शिक्षा समिति की प्रथम बैठक सम्पन्न, शिक्षा, पेयजल सहित अनेक मुद्दों पर हुई चर्चा...दैनिक समाचा... पहलगाम हमले से बैकफुट पर मुस्लिम संगठन, क्या कमजोर पड़ जाएगा वक्फ कानून के खिलाफ आंदोलन?
महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में बदल सकती है राजनीति की दिशा, इन 7 कारणों से एक साथ नजर आ सकते हैं राज और उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र में धर्म और मराठी को लेकर राज्य में माहौल इस समय गरम है। शिक्षा क्षेत्र में हिंदी की अनिवार्यता की नीति का राज्य की राजनीति पर अलग प्रभाव पड़ा है दो पार्टियों के नेतृत्व, जो हमेशा एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं ने अचानक सुलह का संकेत दिया है. राजनीति कब और कैसे बदल जाएगी, यह कोई नहीं बता सकता. अब ‘मौका भी है और दस्तूर भी है’ का माहौल है. राज ठाकरे द्वारा उद्धव ठाकरे से मुलाकात करने के बाद, उन्होंने भी शर्तों की आड़ में महाराष्ट्र के हित में जवाब दिया. राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक साथ आने के पीछे के कारणों का भी विश्लेषण किया जा रहा है. इसके परिणामों और बदलते राजनीतिक समीकरणों को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं. इन दोनों को साथ आने के पीछे कई कारणों का जिक्र किया जा रहा है, लेकिन हम आपको 7 महत्वपूर्ण कारण बताएंगे.

1. शिवसेना के लिए अस्तित्व की लड़ाई

जून 2022 में उद्धव ठाकरे के राजनीतिक सफर ने एक बड़ा राजनीतिक मोड़ लिया. कोरोना के बाद शिवसेना को बड़ा झटका लगा. एकनाथ शिंदे ने विद्रोह कर दिया. उन्होंने पार्टी के विधायकों को साथ लेकर बीजेपी के साथ गठबंधन किया. इसके लिए शिवसेना-शिंदे समूह अस्तित्व में आया. उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. उसके बाद जो कुछ हुआ वो सबके सामने है. इसी बीच 2023 में चुनाव आयोग ने ना को शिवसेना का चुनाव चिन्ह और एकनाथ शिंदे के गुट को धनुष्यबाण का चुनाव चिन्ह दे दिया. उद्धव गुट को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और मशाल चिन्ह दिया गया. शिवसेना विभाजित हो गई, चुनाव चिन्ह छिन गया.

लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन करने वाले उद्धव ठाकरे गुट को विधानसभा में बड़ा झटका लगा. लोगों ने महाविकास अघाड़ी को अस्वीकार कर दिया. ईवीएम के मतदान से महा विकास अघाड़ी के घटक दलों का पत्ता साफ हो गया. अब पार्टी को राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है. इस संबंध में राज ठाकरे का आह्वान महत्वपूर्ण है. मुंबई महानगरपालिका मुद्दे को हाथ से निकलने नहीं देना चाहती तो मराठी के मुद्दे पर दोनों भाई एक साथ आ सकते हैं. यह चुनाव अगले बड़े प्रयोग के लिए एक लिटमस टेस्ट हो सकता है.

2. विधानसभा चुनाव के नतीजों ने हमारी नींद उड़ा दी

उद्धव ठाकरे ने विधानसभा चुनाव उद्धव बालासाहेब ठाकरे शिवसेना के नाम से और नए चुनाव चिन्ह के साथ लड़ा. वास्तव में, यह उनके लिए अग्नि परीक्षा थी. उद्धव ठाकरे समूह ने राज्य में 95 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये थे, लेकिन वे केवल 20 सीटें ही जीत सके. इनमें से 10 मुंबई में थे. दूसरी ओर, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना ने 81 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 57 सीटों पर जीत हासिल की. महाविकास अघाड़ी में सहयोगी दलों को भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली. इसलिए अब मराठी भाषा और महाराष्ट्र के मुद्दे पर दोनों ठाकरे एक साथ आ सकते हैं.

3. मनसे खाते में शून्य

पिछले दो विधानसभा चुनावों से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. पार्टी की स्थापना के बाद से मनसे ने मराठी के मुद्दे पर बड़ी जीत हासिल की थी. 2009 के चुनावों में मनसे ने 13 सीटें जीतीं. 2014 में उन्हें एक सीट पर संतोष करना. 2019 और 2024 के चुनावों में खाता भी नहीं खोल सके.

4. माहिम में बेटे की हार बड़ा झटका

राज ठाकरे ने लोकसभा में बिना शर्त महागठबंधन का समर्थन किया. कोई उम्मीदवार नहीं दिया गया. फिर भी, महायुति ने माहिम में राज ठाकरे के बेटे का समर्थन नहीं किया. इसलिए अमित ठाकरे की हार हुई. इस निर्वाचन क्षेत्र में उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार महेश सावंत ने शिंदे गुट और मनसे को झटका दिया. अब मनसे को राजनीतिक मुख्यधारा में एक बड़े चमत्कार की जरूरत है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मराठी और महाराष्ट्र के मुद्दे पर राजनीति गरमाई तो मनसे और उद्धव ठाकरे गुट को भविष्य में बड़ी सफलता मिल सकती है.

5. मुंबई नगर निगम चुनाव

नगर निगम चुनाव नजदीक आ रहे हैं. आने वाले समय में चुनाव की तारीखों का ऐलान भी हो सकता है. पार्टी में विभाजन के बाद उद्धव ठाकरे गुट चुनाव मैदान में उतरेगी. 2017 के मुंबई महानगरपालिका चुनाव में एकजुट शिवसेना ने 84 सीटें जीती थीं. बीजेपी ने 82 सीटें जीती थीं. मनसे एक भी सीट नहीं जीत सकी. भाजपा ने विधानसभा में बड़ी छलांग लगाई है. पार्टी ने मुंबई में एक मजबूत नेटवर्क बनाया है. इसलिए मनसे और उद्धव ठाकरे गुट के सामने बड़ी चुनौती है.

6. जनता क्या चाहती है?

जनता की भावना यह है कि दोनों भाइयों उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को एक साथ आना चाहिए. जनता की राय है कि एक साथ आने से नगरपालिका चुनाव पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. वर्तमान में, मुंबई में मराठी लोग न केवल नाखुश हैं, अन्य भाषा को लेकर चल रही बहस से नाराज भी बताए जा रहे हैं. माना जा रहा है कि वे बेहतर विकल्प की प्रतीक्षा कर रहे हैं. अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक साथ आते हैं तो सत्तारूढ़ पार्टी का सिरदर्द बढ़ सकता है.

7. राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने की चुनौती

राज्य में सरकार पांच साल के लिए स्थिर है. सरकार के पास बड़ा बहुमत है. इसलिए उद्धव ठाकरे गुट को पार्टी विभाजन से लेकर पार्टी पतन तक राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा. इसलिए मनसे अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाना चाहती है. इसके लिए यदि दोनों भाई एक साथ आएं तो वे पूरक भूमिकाओं से लाभान्वित हो सकते हैं.

Back to top button