सहकार भारती का नवाचारपूर्ण प्रयास: बायो डीकंपोजर और नैनो तकनीक के माध्यम से जैविक और प्राकृतिक खेती को दे रहे बढ़ावा
अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 में गौग्राम जनजागरण यात्रा से 50,000 किसानों तक पहुंचा संदेश

रायपुर। देश की कृषि व्यवस्था को आत्मनिर्भर, पर्यावरण-संवेदनशील और टिकाऊ बनाने की दिशा में सहकार भारती ने एक ठोस पहल करते हुए गौग्राम जनजागरण यात्रा 2025 का आयोजन किया है। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब वर्ष 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है, जो सहकारिता आंदोलन को वैश्विक पहचान देने और उसकी जड़ों को और गहरा करने का महत्वपूर्ण अवसर है। इस यात्रा के माध्यम से छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में किसानों को बायो डीकंपोजर, इफको के नैनो यूरिया, और नैनो डीएपी जैसी नवीनतम कृषि तकनीकों की जानकारी दी जा रही है। इस अभियान में अब तक 50,000 से अधिक किसानों को जागरूक किया जा चुका है।
इस पहल की अगुवाई सहकार भारती छत्तीसगढ़ के प्रदेश कोषाध्यक्ष श्री रामप्रकाश केशरवानी तथा पैक्स प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक श्री घनश्याम तिवारी कर रहे हैं, जिन्होंने छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में यात्रा के माध्यम से किसानों से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित कर इन्हें नई कृषि पद्धतियों के प्रति जागरूक किया। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष को ध्यान में रखते हुए इस यात्रा को ग्राम्य सहकारिता के नए मॉडल के रूप में स्थापित करने का भी संकल्प लिया गया है।
घनश्याम तिवारी ने किसानों को बताया कि बायो डीकंपोजर एक जैविक घोल है, जिसे खेतों में छिड़कने से पराली और अन्य फसल अवशेष 15-20 दिनों में सड़कर प्राकृतिक खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। इससे खेत की उर्वरता बढ़ती है, रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होती है और सबसे बड़ी बात यह कि पराली जलाने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, जिससे पर्यावरण को बचाने में बड़ी मदद मिलती है। बायो डीकंपोजर का उपयोग न केवल जैविक खेती को प्रोत्साहित करता है, बल्कि यह प्राकृतिक खेती की दिशा में एक ठोस कदम भी है।
श्री रामप्रकाश केशरवानी ने बताया कि इफको द्वारा विकसित नैनो यूरिया और नैनो डीएपी पारंपरिक उर्वरकों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावशाली हैं। एक बोतल नैनो यूरिया 45 किलो यूरिया की क्षमता के बराबर होती है, जिससे किसानों की लागत में भारी कमी आती है और उपज भी प्रभावित नहीं होती। इससे मिट्टी की सेहत भी सुधरती है और भूजल व पर्यावरण पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष में इन नवाचारों को ग्रामीण भारत तक पहुंचाना सहकारिता के सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
गौग्राम जनजागरण यात्रा के माध्यम से सहकार भारती का उद्देश्य केवल खेती को लाभकारी बनाना नहीं है, बल्कि गांवों को आत्मनिर्भर, स्वावलंबी और संवेदनशील कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर करना है। इसके लिए सहकारिता के माध्यम से किसानों को संगठित कर, उन्हें तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। यात्रा में गौ-संवर्धन, स्वदेशी उत्पादों का प्रचार, और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का प्रसार भी किया जा रहा है।
यात्रा के दौरान जगह-जगह ग्राम सभाएं, प्रशिक्षण शिविर, प्रदर्शनियां और संवाद सत्र आयोजित किए गए। किसानों, युवाओं और महिलाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। यात्रा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने स्थानीय बोली-भाषा में सरल तरीके से तकनीकों की जानकारी देकर किसानों में नया विश्वास जगाया। श्री केशरवानी ने बताया कि यह यात्रा एक आंदोलन का रूप ले चुकी है, जो आने वाले समय में प्राकृतिक खेती के नए युग की नींव रखेगी। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 में छत्तीसगढ़ को जैविक और सहकारी खेती का मॉडल राज्य बनाने का यह प्रयास अनुकरणीय है।