August 4, 2025 6:49 pm
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मध्यप्रदेश

50 बोरियों के साथ शुरू किया था बिजनेस, आज सीमेंट कंपनियों के मालिक… पढ़िए वैभव श्रीवास्तव की सक्सेस स्टोरी

ग्वालियर: शहर में एक शख्स एक छोटी-सी दुकान से अपने जीवन का संघर्ष शुरू करता है और बहुत मेहनत करने के बाद फैक्ट्री का मालिक बन जाता है। ये सब सोचने में कितना कठिन लगता है, लेकिन ऐसे ही एक शख्स ग्वालियर में भी। इन्होंने समय की मार को झेलते हुए एक छोटी-सी दुकान खोली थी और कुछ वर्षों के संघर्ष के बाद अब वह खुद फैक्ट्रियों के मालिक हैं।

इनका सीमेंट पूरे मध्यप्रदेश में तो सप्लाई होता ही है। इसके अलावा इसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी सप्लाई किया जाता है। इनका नाम है वैभव श्रीवास्तव।

वैभव श्रीवास्तव ने बताई अपनी सफलता की कहानी

  • वैभव श्रीवास्तव ने बताया कि साल 1998 में उन्होंने अपने वक्त को बदलने के उद्देश्य से सीमेंट की एक छोटी सी दुकान खोली थी। दुकान भी क्या सिर्फ 50 बोरियां सीमेंट की खरीदीं और उन्हें बेचना शुरू कर दिया।
  • उन्होंने बताया कि मुझे एक बोरी पर दो रुपये मुनाफा होता था और सीमेंट की बोरी डिलीवरी करने के ठेले वाला भी दो रुपये मांगता था। यानी इतनी मेहनत के बाद भी हाथ में कुछ नहीं आना था।
  • वैभव ने फिर एक बार हिम्मत जुटाई और खुद ही सीमेंट की बोरी साइकिल पर रख डिलीवरी करने लगे। धीरे-धीरे यह मेहनत रंग लाई और उन्होंने खुद का एक ठेला खरीदा, जिससे डिलीवरी की जाने लगी।
  • समय के साथ काम बढ़ा तो उन्होंने एक सीमेंट कंपनी की डीलरशिप ले ली। दो साल उसे चलाने के बाद उन्होंने खुद की सीमेंट फैक्ट्री खोलने का निर्णय लिया और उन्होंने एक सीमेंट फैक्ट्री शुरू कर दी।
  • फैक्ट्री शुरू करने के बाद उनके जीवन में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव भी आए। लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।

    हर संघर्ष में पत्नी सारिका ने दिया बहुत साथ

    वैभव बताते है कि मेरे जीवन के इस संघर्ष में पत्नी सारिका ने बहुत साथ दिया। उनके मुताबिक, वैसे तो मैं अपनी सीमेंट की फैक्ट्री के कार्य में व्यस्त रहते हैं, फिर भी वह कुछ समय निकालकर समाज सेवा में लगाते हैं और इसमें भी उनकी पत्नी साथ देती हैं। उनका कहना है कि जीवन में भाग-दौड़ तो हम सभी के साथ है। लेकिन कुछ समय निकालकर लोगों की मदद करने में जो सुकून मिलता है उससे मेरी सारी थकान दूर हो जाती है। समाज के लोगों को जब भी मेरी जरूरत पड़ती है तब मैं उनके लिए तत्पर खड़ा रहता हूं।

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