गौग्राम जनजागरण यात्रा में इफको के सहयोग से 30 हजार किसानों तक पहुंचा संदेश
अब तक 24 ग्रामों में नैनो यूरिया, डीएपी व बायो डीकंपोजर की जानकारी, हर ग्राम में हो रही छोटी संगोठी

रायपुर। छत्तीसगढ़ में सहकार भारती एवं पैक्स प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में चल रही गौग्राम जनजागरण यात्रा 2025 किसानों को आत्मनिर्भर, स्वदेशी और वैज्ञानिक खेती की ओर प्रेरित कर रही है। अब तक यह यात्रा 30 हजार से अधिक किसानों तक पहुंच चुकी है और 24 ग्रामों में गांव स्तर पर छोटी-छोटी संगोठियों के माध्यम से किसानों को इफको के उन्नत कृषि उत्पादों की जानकारी दी गई है। इस अभियान का नेतृत्व प्रदेश कोषाध्यक्ष रामप्रकाश केशरवानी और पैक्स प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक घनश्याम तिवारी कर रहे हैं।
गांवों में आयोजित इन संगोठियों में किसानों को इफको द्वारा निर्मित नैनो यूरिया और नैनो डीएपी के उपयोग के लाभ और प्रयोग विधियों के बारे में बताया गया। नैनो यूरिया की 500 मि.ली. शीशी एक बोरी यूरिया के बराबर पोषक तत्व प्रदान करती है, जिससे लागत घटती है और उपज बढ़ती है। यह न केवल पौधों को सीधा पोषण देता है, बल्कि मिट्टी को नुकसान से भी बचाता है।
इसी प्रकार, नैनो डीएपी किसानों के लिए एक क्रांतिकारी विकल्प बनकर उभरा है, जो परंपरागत डीएपी की तुलना में ज्यादा असरकारक और पर्यावरण-अनुकूल है। इफको के प्रशिक्षित प्रतिनिधियों और अभियान के आयोजकों ने किसानों को इन उत्पादों के वैज्ञानिक प्रयोग और समयबद्ध उपयोग के बारे में जानकारी दी, जिससे खेती अधिक टिकाऊ और लाभदायक बन सके।
यात्रा के दौरान किसानों को इफको का बायो डीकंपोजर भी वितरित किया गया, जो फसल कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों को सड़ाकर जैविक खाद में बदल देता है। इससे पराली जलाने की जरूरत नहीं होती, पर्यावरण सुरक्षित रहता है और मिट्टी की जैविक गुणवत्ता भी बनी रहती है। इस डीकंपोजर का उपयोग करना सरल, सस्ता और पूरी तरह प्राकृतिक है।
सहकार भारती और पैक्स प्रकोष्ठ के कार्यकर्ताओं का मानना है कि इफको जैसे स्वदेशी संस्थानों के सहयोग से गांवों में कृषि चेतना को एक नई दिशा मिल रही है। श्री रामप्रकाश केशरवानी ने कहा, “हमारा उद्देश्य केवल उत्पाद का प्रचार नहीं, बल्कि किसान को सशक्त बनाना है।” श्री घनश्याम तिवारी ने कहा, “हर ग्राम में छोटी संगोठी के माध्यम से हम सीधा संवाद कर रहे हैं और किसानों को आत्मनिर्भर कृषि की राह दिखा रहे हैं।”
यह यात्रा अभी भी जारी है और हर दिन नए गांवों में पहुंचकर किसानों से सीधा संवाद स्थापित किया जा रहा है। 30 हजार से अधिक किसानों तक पहुंचने के बाद अब यह आंदोलन एक जनचेतना का रूप ले चुका है। किसान न केवल उत्पादों में रुचि दिखा रहे हैं, बल्कि इन्हें अपनाने के लिए भी तत्पर दिखाई दे रहे हैं।