June 10, 2025 1:59 pm
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‘मेरे लिए देश पहले, बीवी-बच्चा कुर्बान करने पड़ें तब भी गम नहीं…’, बिहार में पाकिस्तान के दामाद का फूटा गुस्सा

पहलगाम में हुए आतंकी हमले से जहां पूरे देश में रोष व्याप्त है, वहीं बिहार में रह रहे पाकिस्तान के दामाद के गुस्से का अलग ही लेवल देखने को मिला. मुजफ्फरपुर निवासी आफताब आलम की बीवी और बेटी पाकिस्तान में हैं. आफताब ने पाकिस्तानी सायना कौसर से निकाह किया था. आफताब को पहलगाम हमले का इतना दुख है कि उन्होंने कहा- पाकिस्तान से आर-पार की लड़ाई होनी चाहिए. मेरे लिए देश पहले है, बीवी-बेटी बाद में.

गुस्से का आलम तो इतना है कि आफताब ने ये तक कह डाला- देश के लिए बीवी और बेटी की कुर्बानी देनी पड़ी तो भी मैं पीछे नहीं हटूंगा. मुझे उन्हें कुर्बान करने में कोई गम नहीं होगा. आफताब औराई के रहने वाले हैं. उनकी पत्नी सायना कौसर और बेटी आफिया इस समय पाकिस्तान के कराची में हैं.

आफताब की बेटी पाकिस्तान के एक प्राइवेट स्कूल में पांचवीं क्लास में पढ़ती है. जबकि, पत्नी सायना एक कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर हैं. 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से आफताब काफी आक्रोशित हैं. उन्होंने कहा- पाकिस्तान का कोई भरोसा नहीं. वह न तो खुद के नागरिकों से इंसानियत से पेश आता है. न ही पड़ोसी देशों के साथ. आफताब ने दुख जताते हुए कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो देश के लिए वे अपनी पत्नी और बेटी की भी कुर्बानी देने को तैयार हैं.

2012 में हुई थी सायना से शादी

उन्होंने बताया- मेरी शादी 2012 में पाकिस्तान में हुई थी. मैं अपनी बुआ से मिलने पाकिस्तान गया था. वहीं दोनों परिवारों की सहमति से मेरा और सायना का निकाह तय हो गया. मेरी बुआ का परिवार पहले बिहार के सीतामढ़ी जिले के बेलसंड से था. लेकिन फूफा के बांग्लादेश में रेलवे अधिकारी के रूप में नौकरी करने के चलते वह परिवार बांग्लादेश गया था. 1971 में बांग्लादेश के अलग देश बनने के बाद उनका परिवार फिर पाकिस्तान चला गया था.

शॉर्ट टर्म वीजा ही मिल पाता था

शादी के बाद आफताब ने पत्नी और बेटी के लिए भारत लाने का प्रयास कई बार किया. उन्होंने छह बार लॉन्ग टर्म वीजा के लिए आवेदन किया, लेकिन वीजा नहीं मिल सका. जब भी पत्नी और बेटी भारत आती थीं, वे छह महीने से एक साल तक रुकती थीं. फिर वीजा खत्म होने पर लौट जाती थीं. आखिरी बार 22 नवंबर को उनकी पत्नी और बेटी भारत आई थीं और 25 फरवरी को अटारी बॉर्डर के रास्ते वापस पाकिस्तान चली गईं.

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