August 5, 2025 6:01 pm
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DNA Test के खिलाफ सीनियर एडवोकेट की याचिका रद्द, महिला वकिल ने लगाए हैं गंभीर आरोप

बिलासपुर: हाई कोर्ट ने एक सीनियर एडवोकेट द्वारा डीएनए टेस्ट करवाने के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता पर उनकी जूनियर रह चुकी महिला वकील ने शारीरिक संबंध और बच्चे के जन्म का दावा करते हुए फैमिली कोर्ट में पितृत्व परीक्षण (डीएनए टेस्ट) की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।

हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने महत्वपूर्ण तथ्य छिपाए हैं और ऐसा कोई नया आधार प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द किया जाए।

क्या है पूरा मामला

कोरबा के वरिष्ठ अधिवक्ता श्यामलाल मल्लिक के विरुद्ध 37 वर्षीय महिला अधिवक्ता ने गंभीर आरोप लगाए हैं। शिकायतकर्ता के अनुसार, जब वह उनके अधीन जूनियर वकील के तौर पर कार्यरत थीं, तब सीनियर अधिवक्ता ने उनके साथ शारीरिक संबंध बनाए, जिसके परिणामस्वरूप एक बच्चे का जन्म हुआ।

महिला वकील ने आरोप लगाया कि उसे और उसके बच्चे को कोई वैधानिक अधिकार नहीं मिला, जिसके चलते उसने फैमिली कोर्ट में आवेदन देकर डीएनए टेस्ट के माध्यम से बच्चे का पितृत्व स्पष्ट करने की मांग की। फैमिली कोर्ट ने 8 अक्टूबर 2024 को इस आवेदन को मंजूर कर लिया।

हाई कोर्ट ने कहा- अधिकार क्षेत्र पहले ही तय हो चुका

हाई कोर्ट ने साफ किया कि फैमिली कोर्ट का अधिकार क्षेत्र पहले ही तय हो चुका है और इससे संबंधित निर्देश पहले दी जा चुकी याचिका में दिए गए थे। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला अधिवक्ता द्वारा मांगी गई राहत फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आती है।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के इवान रथिनम बनाम यूनीयन आफ इंडिया केस का उल्लेख करते हुए कहा कि डीएनए टेस्ट जैसे आदेश केवल तब दिए जा सकते हैं जब साक्ष्य पर्याप्त न हों और दोनों पक्षों के हितों में संतुलन बनाए रखना जरूरी हो। इस मामले में प्रारंभिक साक्ष्य अपर्याप्त पाए गए, इसलिए डीएनए टेस्ट की अनुमति देना उचित समझा गया।

ब्लड सैंपल देने के बावजूद तथ्य छिपाए गए हाई

कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने 4 जुलाई 2024 को ब्लड सैंपल देने की सहमति दी थी और सैंपल लिया भी गया, बावजूद इसके उन्होंने कोर्ट के समक्ष कई तथ्य छुपाए। उनकी याचिका में उठाए गए सभी मुद्दे पूर्व में तय किए जा चुके हैं और उन्होंने कोई नया कानूनी आधार प्रस्तुत नहीं किया जिससे फैसले पर पुनर्विचार हो सके। हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए पहले दी गई अंतरिम राहत को भी समाप्त कर दिया।

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