काव्य – महर्षि” को परमात्मा ने शायद काव्य सुनने बुलाया — महावीर
पद्मश्री जनकवि डॉ सुरेंद्र दुबे को विनम्र श्रद्धांजलि

रायगढ़ – – हिंदी साहित्य, छत्तीसगढ़ भाषा,संस्कृति व अपनी माटी की गरिमा को अपने सहज – सरल व्यक्तित्व और खूबसूरत चुटीले काव्यात्मक अंदाज से विश्व स्तर में संदल की तरह सुवासित करने वाले काव्य जगत के महर्षि, पद्मश्री से सम्मानित छत्तीसगढ़ के काव्य रत्न, जन – जन के चहेते, हर अधर को मुस्कान देने वाले काव्य महर्षि जनकवि डॉ सुरेंद्र दुबे का अनायास ब्रम्हलोक गमन से अपने हृदय की असीम वेदना को अभिव्यक्त करते हुए और अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए शहर के सामाजिक कार्यकर्ता भाई महावीर ने कहा कि मुझे पिता की तरह उनका असीम स्नेह और आशीर्वाद मिला और मैं बड़े ही सम्मान से उन्हें काका जी कहता था। शहर व स्थानीय क्षेत्रों में वे जब भी आते थे तो मुझे अवश्य बुलाते थे। मेरे अंतस हृदय को अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है और न कभी होगा कि हमारे जनकवि “पद्मश्री” “काव्य – महर्षि” डॉ सुरेंद्र दुबे काका जी हम सभी को रुलाकर जग को अलविदा कह गए हैं उनकी कालजयी बेशुमार पंक्तियां के साथ “अभी साँस लेना है और” टाइगर अभी जिंदा है ” की पंक्तियाँ युगों – युगों तक इस ब्रम्हांड में गुंजित होकर हर मन को गुदगुदाएंगी तो उनके हर हर्फ़ से जीवन को सदैव नयी उर्जा व समाज को एक नयी दिशा भी मिलती रहेगी।

हँसाकर दिखाते थे सच्चाई का आईना – – ब्रम्हलीन पद्मश्री डॉ पं सुरेंद्र दुबे काका जी समाज को हास्य और व्यंग्य की अनोखी शैली से ज्वलंत उदाहरणों को बड़ी सहजता से अपनी हास्य शैली के जरिए जन – जन को खूब हँसाकर व अंर्तमन तक स्पर्श कर समाज को सच्चाई का आईना दिखाते थे। और हर व्यक्ति को सोचने के लिए विवश कर देते थे। इस तरह समाज को सुधारने में अपने विचारों से अपनी नयी उर्जा देने में वे सिद्धहस्त थे।
शब्दों के थे जादूगर – – विद्या की देवी माँ शारदे की उन पर असीम कृपा थी यही वजह है कि वे शब्दों के बड़े जादूगर थे। जो हर किसी में ऐसी कला नहीं रहती। केवल माँ शारदे की कृपा से केवल विरले लोग में ही ऐसी दिव्य कला देखने को मिलती है। उनके अनायास हमें रुलाकर जाने से समाज व साहित्य में ऐसी रिक्तता आई है जिसकी भरपाई कर पाना अब असंभव प्रतीत हो रहा है। उन्होंने अपनी दूरगामी सोच व कालजयी कृति से देश व समाज को सच्चाई का आईना हास्य के माध्यम से दिखाए जो हर किसी में ऐसी विलक्षण प्रतिभा देखने को अब नहीं मिलेगी।
साहित्य को दिए अतुलनीय योगदान – – सजल नयन से भाई महावीर ने कहा हिंदी के प्रचार प्रसार में विश्व स्तर में अपना अतुलनीय योगदान काका जी पद्मश्री डॉ सुरेंद्र दुबे दिए हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रचार- प्रसार विश्व स्तर में करके अतुलनीय योगदान देकर छत्तीसगढ़ महतारी का मान बढ़ाए हैं। इसीलिए सरकार ने उनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए राजभाषा आयोग का अध्यक्ष बनाए थे।
हर महफिल में छा गए, सभी को भा गए – – उनके विराट व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे जहां भी काव्य पाठ करते थे उस महफिल में छा जाते थे और लोगों का दिल अपनी काव्यात्मक शैली से जीत कर हर किसी के दिल में उतर जाते थे। उनके काव्य पाठ का अंदाज खूबसूरत व अनुपम था। वहीं हर काव्य महफिल में लोगों के बीच अपने काव्य पाठ के अंदाज से अपनत्व का ऐसा मीठा रिश्ता बनाते थे जिससे लोग सदैव के लिए उनके ही हो जाते थे। ऐसी विशिष्ट खासियत और शख्सियत लाखों में से एक लोगों में देखने को मिलती है। पूरा जीवन उन्होंने मुस्कुराहट भरे चेहरे से जिस ओर देखते थे तालियों की गड़गड़ाहट गुंजती थी। शुरु से लेकर काव्य पाठ के अंत तक “सांस लेना है” “टाइगर अभी जिंदा है” और “छत्तीसगढ़ झकास है” कहकर लोगों का दिल जीत लेते थे। वे महान दूरदर्शी व प्रज्ञावान जनकवि थे उनके हर एक हर्फ़ में काव्य की महक थी। वे दिल तक उतरने वाली बेशुमार कविताओं से विश्व स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाए हैं साथ ही भारत माता और छत्तीसगढ़ महतारी का मान बढ़ाए हैं। उनकी विशिष्ट शैली का अंदाज लगाना अत्यंत कठिन है। उनके दुखद निधन से साहित्य व समाज में भरपाई होना असंभव है। और भरे हृदय से भाई महावीर ने कहा वे “काव्य – महर्षि” थे शायद परमात्मा ने शायद काव्य सुनने उनको चुपचाप बुला लिया।